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Rajkumar Ki Kahani Bhoot Wali: शापित किले का रहस्य

Rajkumar Ki Kahani Bhoot Wali

राजकुमार और शापित किला: Rajkumar Ki Kahani Bhoot Wali

बहुत समय पहले की बात है, एक समृद्ध राज्य हुआ करता था — राज्य अरण्यगढ़। इस राज्य के राजा, वीरसिंह, अपने साहस और न्यायप्रियता के लिए दूर-दूर तक प्रसिद्ध थे। उनके इकलौते पुत्र, राजकुमार अर्णव, एक साहसी, समझदार और जिज्ञासु युवक थे। लेकिन अर्णव को हमेशा एक रहस्य खींचता था — उत्तर की ओर स्थित पुराना खंडहरनुमा किला, जिसे लोग “शापित किला” कहते थे।

किले की किंवदंती

कहते हैं कि वर्षों पहले, उस किले में एक ज़ालिम राजा सत्यकेतु का राज था। सत्यकेतु को तांत्रिक विद्या का मोह था, और उसने अमरता पाने के लिए कई निर्दोषों की बलि दी। एक दिन, एक सच्चा योगी उस किले में पहुँचा और सत्यकेतु को उसके पापों के लिए श्राप दिया, “तेरी आत्मा इस किले में तब तक भटकेगी जब तक कोई निर्दोष राजवंशी इस किले में आकर तुझे मुक्ति न दे।”

उस दिन के बाद से, किले से चीख़ों की आवाज़ें आती रहीं। लोगों का कहना था कि किले में जाने वाले कभी लौटकर नहीं आते। धीरे-धीरे वह किला वीरान हो गया और “शापित किला” कहलाने लगा।

जिज्ञासा का बीज

राजकुमार अर्णव ने यह कहानी बचपन से सुनी थी, और जैसे-जैसे वह बड़ा हुआ, उसकी जिज्ञासा बढ़ती गई। एक दिन उसने अपने पिता से पूछा, “पिताजी, क्या वह किला सच में शापित है?”

राजा वीरसिंह ने गंभीरता से उत्तर दिया, “बेटा, कभी-कभी कुछ दरवाज़े बंद ही रहने चाहिए। जो लोग वहाँ गए, वे कभी नहीं लौटे। वह किला अब मृत्यु की गुफा है।”

लेकिन अर्णव की आँखों में कुछ और ही चमक थी — जिज्ञासा, रोमांच, और सत्य की खोज।

प्रस्थान की रात

एक अमावस्या की रात, जब पूरा महल सो रहा था, अर्णव ने अपने घोड़े केशर पर सवार होकर शापित किले की ओर प्रस्थान किया। चाँदनी नहीं थी, आसमान काले बादलों से घिरा था, और चारों ओर सन्नाटा पसरा था।

किले के पास पहुँचते ही केशर रुक गया। घोड़ा थर-थर काँपने लगा, जैसे किसी अदृश्य शक्ति से भयभीत हो। अर्णव ने उसे एक पेड़ से बाँध दिया और अकेला ही किले के भीतर चला गया।

किले का रहस्य

किले का मुख्य द्वार अपने आप खुल गया। अंदर घुसते ही उसे लगा जैसे हवा भी साँसें रोककर खड़ी हो। चारों तरफ जाले, टूटी दीवारें, और एक अजीब-सी सड़ांध थी। हर कदम पर ऐसा लगता मानो कोई छाया उसका पीछा कर रही हो।

अचानक, एक ज़ोरदार ठहाका गूंजा — “क्यों आया है राजकुमार? अपनी मृत्यु देखने?”

अर्णव चौंका, लेकिन डर के बजाय उसने हिम्मत दिखाई और बोला, “मैं सत्य जानने आया हूँ। अगर तुम आत्मा हो, तो क्यों इस किले में बंधे हो?”

एक धुँधली आकृति सामने प्रकट हुई — वह था सत्यकेतु की आत्मा। उसकी आँखें खून की तरह लाल थीं, और चेहरा आग में जला हुआ प्रतीत होता था।

“मुझे मुक्त कर, राजकुमार!” आत्मा चीखी, “लेकिन मुक्ति के लिए तुझे मेरी पीड़ा समझनी होगी!”

भूत की परीक्षा: Kahani Bhoot Wali

सत्यकेतु ने अर्णव को एक रहस्यमयी दरवाज़े की ओर इशारा किया। “इस द्वार के भीतर तीन परीक्षाएँ हैं — साहस, करुणा, और बलिदान की। अगर तू इन तीनों में सफल हुआ, तो मेरी आत्मा मुक्त हो सकेगी। लेकिन अगर असफल हुआ, तो तेरा भी वही हश्र होगा जो औरों का हुआ।”

अर्णव ने स्वीकृति में सिर हिलाया।

पहली परीक्षा: साहस

पहले कमरे में अंधेरा था। अचानक, वहाँ विशालकाय छायाएँ प्रकट हुईं, जो अर्णव पर हमला करने लगीं। ये उसकी सबसे बड़ी डरावनी कल्पनाएँ थीं — उसकी माँ की मृत्यु, युद्ध की हार, और अकेलेपन का भय। लेकिन अर्णव ने आँखें बंद कीं, गहरी साँस ली और बोला, “ये सब केवल मेरे डर हैं — असलियत नहीं।”

जैसे ही उसने यह कहा, सब गायब हो गया। दरवाज़ा खुल गया।

दूसरी परीक्षा: करुणा

दूसरे कमरे में एक घायल सैनिक पड़ा था, जिसकी साँसें अंतिम थीं। उसके पास एक औषधि थी, लेकिन उस औषधि से अर्णव स्वयं को भी जख्म से बचा सकता था। एक आवाज़ गूंजी, “तू चाहता है बचना या किसी और को बचाना?”

अर्णव ने बिना सोचे घायल को औषधि पिलाई। सैनिक मुस्कराया और बोला, “तू सफल हुआ।”

तीसरी परीक्षा: बलिदान

अंतिम कमरे में एक तांत्रिक खड़ा था। उसने कहा, “अगर तू इस तलवार से अपने हृदय में वार करेगा, तो सत्यकेतु मुक्त होगा। लेकिन तू स्वयं मर जाएगा।”

अर्णव कुछ क्षण चुप रहा। फिर उसने तलवार उठाई और कहा, “अगर किसी आत्मा को शांति मिलती है मेरे बलिदान से, तो यह जीवन व्यर्थ नहीं जाएगा।”

जैसे ही उसने वार किया, तलवार रुक गई — हवा में ही। तांत्रिक की छवि बदल गई — वह वही योगी था जिसने सत्यकेतु को श्राप दिया था।

“राजकुमार अर्णव,” योगी बोले, “तेरी निःस्वार्थता ने सत्यकेतु की आत्मा को मुक्ति दी। तुझे अब वह शक्ति प्राप्त होगी जिससे तू न केवल अपने राज्य की रक्षा कर सकेगा, बल्कि अदृश्य शक्तियों को भी समझ सकेगा।”

मुक्ति और नया अध्याय

सत्यकेतु की आत्मा एक प्रकाश बनकर आकाश में विलीन हो गई। किला हिलने लगा, और धीरे-धीरे उसकी दीवारें गिरने लगीं — जैसे किसी बंधन से मुक्त होकर खुद भी मिट जाना चाहता हो।

अर्णव जब महल लौटा, तो वह केवल एक राजकुमार नहीं रहा। वह अब “अरण्यगढ़ का रक्षक” कहलाया।

कहानी का अंत, लेकिन सीख की शुरुआत

राजकुमार अर्णव की यह भूतिया यात्रा केवल एक साहसी कथा नहीं थी, बल्कि यह एक गहरी सीख थी — डर को स्वीकारो, करुणा रखो, और आवश्यकता पड़ने पर त्याग करने का साहस रखो।

और कहते हैं, आज भी अगर कोई उस पुराने किले के खंडहरों के पास से गुज़रता है, तो उसे एक रौशनी की किरण दिखती है — शायद यह अर्णव की आत्मा है, जो आज भी दूसरों की रक्षा कर रही है।

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