चंपापुर एकजुट जीवन » Long Story in Hindi

नीम शांति मार्ग » Long Story in Hindi
गांव चंपापुर था मेरा — छोटा जरूर था, पर हर घर एक दूसरे से इतना घुल-मिल गया था जैसे एक ही परिवार हों हम सभी। चंपापुर घने नीम, पीपल और आम के पेड़ों से घिरा हुआ था। हर घर आंगन तक फैलने वाली बेलें, हर चबूतरा लोगों की बातचीत, उनके सुख-दुख, उनके जीवन की कहानियों का केंद्र था। मेरा नाम श्याम था — श्याम चंपापुर का वही साधारण गांव वाला था जिसके जीवन ने एक असाधारण मोड़ लिया, ऐसा मोड़ जिसने मेरा ही नहीं, पूरे गांव का भाग्य बदल दिया था।
यह बात उसी गर्मियों की है, जब सूरज हर रोज़ आग जैसा बरसा करता था। खेत सूख रहे थे, तालाब लगभग खाली होने लगे थे, गांव वाले चिंतित थे, माता-पिता बेचैन थे — हर कोई इन्द्रदेव से बारिश की उम्मीद लगाए हुआ था। हर गांव वाले ने हर संभव प्रयास किया था — कुएँ अधिक गहरे किए, तालाब साफ किए, यहाँ तक कि गांव ने एक साथ इन्द्रदेव की स्तुति भी किया था, पर कोई फल नहीं आया था।
गांव ने सूखाई देखकर हर घर ने थोड़ा अनाज इकट्ठा किया था, ताकि मुश्किल घड़ी में कोई भूखा न रहे। यहाँ तक कि गांव ने तय किया था कि कोई अधिक या कम नहीं खायेगा, भोजन बराबर बँटा जाएगा, ताकि कोई असंतुलन न रहे।
तभी एक अनजाना साधु आया चंपापुर। साधु कोई साधारण साधु नहीं था — उनके तन पर चटाई जैसा जटा था, उनके गले में असंख्य रुद्राक्ष थे, उनके नेत्र ऐसे थे जैसे उनके भीतर कोई दूसरा ही संसार बसा हुआ था — शांति, क्रोध, ज्ञान, साधना, दर्द… उनके भीतर असंख्य अनुभूतियों ने घर किया हुआ था।
गांव वाले उनके इर्द-गिर्द इकट्ठे होने लगे, हर कोई उनके चमत्कार या आशीर्वाद की उम्मीद लगाए था। साधु ने धीरे से आदेश दिया, “कल सूर्योदय से पहले गांव भर ने नीम की डालियों, फल-फूल, अनाज, घी, शहद — जो भी घर में रखा हुआ है — एक स्थान पर इकट्ठा किया जाये।” गांव ने आदेश माना, लोगों ने रात भर तैयारियाँ कीं, हर घर ने थोड़ा-बहुत दिया, यहाँ तक कि गरीब ने चावल रखा, कारिंदे ने घी दिया, बाग़वान ने फल चढ़ाये…
गांव ने साधु पर विश्वास किया था, उनके आदेश ने लोगों के भीतर एकजुट होने की भावना जगा दी थी — हर कोई एक साथ आया, एक साथ दिया, एक साथ किया।
जब सूरज ने पहली किरण गिराई, साधु ने एक चिता जैसा ढेर बनाया, फिर मंत्रोच्चारण किया — उनके स्वर ने गांव की हर शिरा तक कंपन किया। चिता ने नीला, हरित, सुनहरा — अनजाने रंग फैलाने शुरू किए। तभी आकाश पर घने बादल घिरने लगे, गर्जन होने लगी, बूंदें गिरने लगीं… गांव ने राहत की सांस ली, हर चेहरे पर खुशी फैलने लगी, लोगों ने एक दूसरे का हाथ थामा, एक साथ जयकार किया — “चंपापुर की जय!”
पर साधु ने उसी पल बोला, “यह मात्र आशीर्वाद नहीं… यह एक परीक्षा है… चंपापुर पर आया संकट असली नहीं… असली संकट भीतर पल रहे अहंकार, लालच और असंतोष हैं… जो गांव ने एकजुट होकर हराने होंगे।”
गांव ने साधु की बात सुनने ही शुरू किया था… तभी एक अनजाने शोर ने हर एक दिल घबराकर रखा दिया… शोर धीरे-धीरे बढ़ने लगा… गांव की शांति एक पल में असंतुलित होने लगी… लोगों ने चौंकाकर एक दूसरे की तरफ देखा… साधु ने आकाश की तरफ नजरें घुमाई… उनके नेत्र अधिक गहरे, अधिक गंभीर होने लगे…
चंपापुर पर कोई अनजाना संकट आया था — कोई साधारण आपदा नहीं, कोई साधारण मुश्किल नहीं… इसका असली रूप धीरे-धीरे उनके जीवन पर फैलने वाला था…
गांव चंपापुर पर घने बादल घिरने लगे थे, गर्जन अधिक भयानक होने लगी थी, हर गांव वाले ने एक दूसरे का हाथ थाम लिया था… साधु ने आकाश की तरफ देखा, उनके नेत्र अधिक गहरे, अधिक गंभीर होने लगे थे — जैसे उनके भीतर कोई अनजाना तूफान उमड़ने आया था।
गांव वाले घबराकर साधु की शरण लेते हुए चिल्लाने लगे — “गुरुदेव! इसका अर्थ किया है…? यह कौनसा संकट आया हम पर?” साधु ने शांति बनाए रखने का आदेश दिया, एक ऊँचे चबूतरा पर चढ़ गए… उनके एक हाथ ने आकाश की तरफ इशारा किया… तभी गर्जन अधिक भयानक हुआ, बिजली ने आकाश चीर दिया, एक पल के लिए रात जैसा अँधेरा फैल गया…
गांव ने देखा — बादलों ने एक असाधारण रूप ले लिया था — एक भयानक चेहरा… वही चेहरा था गांव पर आया असली संकट… साधु ने ऊँचे स्वर में बोला, “चंपापुर पर आया यह कोई साधारण आकाश या बादल नहीं… यह गांव वालों की असंतुष्टि, उनके भीतर पल रहे क्रोध, लालच, घमंड, असत्य… उसी ने एक रूप ले लिया है… इसका नाम असंतुलन है।”
गांव वाले स्तब्ध थे… उनके भीतर तक साधु की बातें चुभने लगी थीं… हर एक ने सोचना शुरू किया — मेरा अहंकार, मेरा असंतोष, मेरा क्रोध… इसका गांव पर असर हुआ होगा… साधु ने आदेश दिया, “अब हर गांव वाले ने एक रात एक दिया जलाकर साधना करनी है… भीतर के असंतुलन से मुकाबला करना होगा… तभी यह असंतुलन गांव पर आया संकट छोड़ देगा।”
गांव ने साधु की बात मानी… हर घर ने एक दिया रखा… रात घिरी… चंपापुर ने पहली बार एक अनोखी साधना देखी — हर घर, हर व्यक्ति, हर बूढ़े, हर जवान ने दिया जला रखा था… गांव शांति, साधना, एकजुटता, पश्चात्ताप और संकल्प से भर गया था…
जैसे ही साधना गहन होती गई, आकाश पर गर्जन थमने लगी, बादल धीरे-धीरे बिखरने लगे… साधु ने आकाश की तरफ हाथ फैलाकर बोला, “चंपापुर ने स्वीकार किया… उसने बदलने का मार्ग अपनाकर असंतुलन पर विजय पा ली।”
गांव ने राहत की सांस ली… हर कोई एक दूसरे से गले मिलने आया… साधु ने मुस्कुराकर गांव वालों से कहा, “यह मात्र एक परीक्षा थी… असली युद्ध बाहरी शत्रुओं से नहीं… भीतर की बुराई से होता है… चंपापुर ने इसका मुकाबला किया… इसका फल सुख, शांति और एकजुटता होगा।”
गांव ने साधु का आशीर्वाद लिया… साधु ने एक बार फिर आकाश की तरफ देखा… धीरे-धीरे उनके शरीर ने एक अलौकिक आभा लेनी शुरू किया… गांव ने चौंकाकर देखा — साधु एक नीली-ज्योति में बदलने लगे… धीरे-धीरे उनके साथ आकाश ने नीला, निर्मल रूप धारण किया… साधु ने चंपापुर पर अंतिम आशीर्वाद दिया — “यह गांव एक नए जीवन की नींव रखने आया है… इसका भविष्य सुखद होगा।”
गांव ने साधु की आभा आकाश में घुलने तक आदरपूर्वक नजरें जमाकर रखा… तभी सूरज ने एक बार फिर पहली किरण गिराई… चंपापुर ने नया सवेरा देखा… एकजुट, निर्मल, अधिक मजबूत चंपापुर…
चंपापुर ने नया सवेरा देखा था — सूरज की किरणें नीम, आम और पीपल की घनी डालियों से होकर गांव की हर गली तक फैल रही थीं… हर घर ने साधु की साधना अपनाकर जीवन जीने का नया मार्ग तय किया था… लोगों ने तय किया था कि कोई एक दूसरे पर घमंड नहीं करेगा, कोई अधिक या कम होने का गर्व नहीं पालےगा… हर कोई गांव की एकजुटता, सुख, शांति और समृद्धि सुनिश्चित रखने का प्रयास करता रहेगा…
गांव ने एक बार फिर चंपापुर मंदिर पर एक सभा बुलाई… हर घर से प्रतिनिधि आया… गांव ने तय किया — साधु ने हमें मार्ग दिया, अब हमें इसका पालन जीवनभर करना होगा… तय हुआ कि हर पूर्णिमा की रात गांव एक साथ दिया जलाकर साधना किया करेगा… एक साथ भोजन किया जाएगा… एक साथ सुख-दुख बाँटा जाएगा…
गांव ने एक नया आदेश बनाया — कोई असंतुष्ट होगा या कोई मुश्किल में होगा, तो गांव एकजुट होकर पहले उसको अपनाकर हल ढूंढेगा… कोई गरीब रहे, कोई असहाय रहे — इसका मतलब होगा चंपापुर ने साधु की बात भूल दी… गांव ने तय किया कि हर घर हर गरीब घर की मदद देगा… हर असंतुष्ट व्यक्ति की सुनवाई गांव पंचायत करेगी…
धीमे-धीमे चंपापुर बदलने लगा… लोगों ने एक दूसरे की मुश्किलें अपनाकर उनके दर्द मिटाने शुरू किए… हर खेत अधिक हरियाला हुआ… हर बाग अधिक फल देने लगा… हर आंगन अधिक सुख से भरने लगा… चंपापुर ने साधु की साधना, उनके आदेश और उनके आशीर्वाद से नया जीवन पाया था…
गांव ने साधु की याद में नीम के चबूतरा पर एक शिलालेख रखा —
“चंपापुर ने साधु से पाया जीवन… एकजुट रहे, सुख शांति फैलाओ।”
गांव ने तय किया कि हर नए शिशु का नाम साधु की प्रेरणा पर रखा जाएगा… हर नए घर की नींव साधु की आशीर्वाद शिला पर रहेगी… हर नए त्योहार पर साधु ने दिया एकजुटता का संदेश फैलाकर गांव एक साथ उत्सव मनाकर आशीर्वाद ग्रहण करता था…
समय आया… साधु चंपापुर की सांसों, उनके जीवन जीने की रीति, उनके त्योहारों, उनके संबंधों का अभिन्न हिस्सा बन गए… उनके आदेश मात्र आदेश नहीं रहे… जीवन जीने का मार्ग, जीवन जीने की प्रेरणा रहे…
चंपापुर धीरे-धीरें एक आदर्श गांव बनने लगा… आसपास के गांव चंपापुर आया किया करते… यहाँ एकजुट होने, साधु की प्रेरणा सुनने, जीवन जीने की कला अपनाने… चंपापुर एक उदाहरण था एकजुट गांव का… एक गांव, जहाँ कोई असंतुष्ट नहीं था… कोई गरीब नहीं था… कोई असहाय नहीं था… कोई एकाकी नहीं था…
गांव ने साधु की साधना से प्रेरणा लेकर एक नया संसार बनाया था — एक संसार जहाँ हर कोई एक था… हर कोई एक दूसरे का सुख था… हर कोई एक दूसरे का सहारा था… चंपापुर ने असंतुलन पर विजय पा ली थी… उनके जीवन ने साधु की साधना, उनके आदेश, उनके आशीर्वाद की असली शक्ति दर्शाई थी…
अब चंपापुर एक नाम मात्र गांव नहीं था… यह एक प्रेरणा था… एक उदाहरण था… एक जीवन जीने की कला था…