
कौवा और चिड़िया की कहानी – दोस्ती और बदलाव की प्रेरक कथा
कौवा और चिड़िया की कहानी – एक दोस्ती जो मौसम से भी मजबूत निकली
बहुत समय पहले की बात है, एक घना जंगल था, जहां हर पेड़ की शाख पर ज़िंदगी बसी हुई थी। वहीं एक पुराने आम के पेड़ पर दो परिंदे रहते थे – एक कौवा, नाम था कालू, और एक नन्हीं, सुंदर चिड़िया, जिसका नाम था चंपा।
ये कहानी बस एक आम जंगल की नहीं, ये कौवा और चिड़िया की कहानी है – दो अलग स्वभावों, रंगों और आदतों वाले परिंदों की, जिन्होंने सिखा दिया कि सच्ची दोस्ती ना रंग देखती है, ना जात, ना आदत।
अलग-अलग दुनिया, एक ही डाल
कालू थोड़ा स्वार्थी और चंचल था। हमेशा अपने खाने-पीने और आराम का ही ध्यान रखता। वह दूसरों की बातों पर ज्यादा ध्यान नहीं देता था।
वहीं चंपा, बहुत शांत, दयालु और मिलनसार थी। वह न सिर्फ अपने लिए खाना लाती, बल्कि दूसरों के लिए भी थोड़ा-थोड़ा जमा करती।
पहले-पहल कालू को चंपा की बातें अजीब लगती थीं। वह कहता, “ये दुनिया खुदगर्ज़ है चंपा, इतना सोचोगी तो खुद भूखी रह जाओगी।”
चंपा मुस्कराकर कहती, “अगर हर परिंदा सिर्फ अपने लिए सोचे, तो जंगल भी बेरहम हो जाएगा कालू।”
जब पतझड़ ने दस्तक दी
जंगल में धीरे-धीरे मौसम बदला, और पतझड़ आया। पत्तियां झड़ने लगीं, कीड़े-मकौड़े छुपने लगे, और भोजन scarce हो गया।
कई पक्षी गर्म देशों की ओर उड़ गए, लेकिन कालू और चंपा ने वहीं रहने का फैसला किया।
अब मुश्किल वक्त शुरू हो गया था – खासकर कालू के लिए, जिसने पहले से कुछ जमा नहीं किया था।
चंपा ने तो अपने घोंसले में बीज, जामुन और सूखे कीड़े छुपाकर रखे थे। वह भूखी नहीं रही, लेकिन उसे कालू की चिंता होने लगी।
एक भूखा कौवा और एक भरी तिजोरी
एक दिन कालू चुपचाप चंपा के घोंसले के पास आया और कहा,
“चंपा… कुछ खाने को मिलेगा?”
चंपा मुस्कराई और बोली,
“आ जाओ कालू, ये घोंसला सिर्फ मेरा नहीं, अब तुम्हारा भी है।”
कालू चौंक गया।
“लेकिन मैंने तुम्हारी बात कभी नहीं मानी, तुमसे बहस की… फिर भी?”
चंपा ने कहा,
“सर्दी की रातें तो कट जाएंगी, लेकिन अगर दोस्ती मर गई, तो दिल कैसे गरम रहेगा?”
कालू की आंखों में पहली बार शर्म और आभार दोनों दिखाई दिए।
जब तूफान आया
सर्दियों की एक रात अचानक आंधी-तूफान आया। डालें हिलने लगीं, कई परिंदों के घोंसले टूट गए। कालू का पुराना घोंसला उड़ गया।
अब उसके पास सिर छुपाने की भी जगह नहीं थी।
चंपा ने बिना देर किए उसे अपने छोटे से घोंसले में पनाह दी।
भीड़-भाड़ थी, जगह कम थी, पर दिल बड़ा था।
“तू हमेशा कहता था कि मैं बेवकूफ हूं जो दूसरों के लिए सोचती हूं,” चंपा ने मुस्कराते हुए कहा,
“अब बता, बेवकूफी ठीक लग रही है न?”
दोनों ज़ोर से हंस पड़े – सर्दी की सबसे ठंडी रात में गर्म हंसी की रौशनी थी।
जब बहार लौटी
मौसम बदला। फूल फिर से खिलने लगे, पत्ते हरे हो गए। जंगल में फिर से रौनक आ गई।
अब कालू बदल चुका था।
वह अब खुद खाने से पहले दूसरों की चिंता करता, बीज इकट्ठा करता और बुजुर्ग पक्षियों को खिलाता। हर कोई चकित था।
एक दिन एक नन्हा तोता बोला, “ये वही कौवा है जो सिर्फ अपने लिए सोचता था?”
चंपा हँसी और बोली, “कभी-कभी, प्यार और दोस्ती का असर सबसे कठोर दिल पर भी होता है।”
अंतिम मोड़ – सच्ची दोस्ती की उड़ान
एक दिन चंपा ने कहा, “मुझे लगता है अब हमें जंगल के बच्चों को सिखाना चाहिए कि दोस्ती क्या होती है – और कैसे कोई एक कौवा भी चिड़िया की चंपा से बहुत कुछ सीख सकता है।”
कालू ने हामी भरी।
अब दोनों एक साथ जंगल के स्कूल जाते, बच्चों को दोस्ती, भरोसे, और त्याग की कहानियां सुनाते – और हर कहानी के अंत में कहते:
“हमारी कहानी सुनो – ये है असली ‘कौवा और चिड़िया की कहानी’। एक ऐसी कहानी जो रंगों से नहीं, रिश्तों से लिखी गई है।”
सीख (Moral of the Story):
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सच्ची दोस्ती जाति, रूप, या आदतों की मोहताज नहीं होती।
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त्याग और सहानुभूति से कठोर दिल भी बदल सकते हैं।
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बुरे समय में मदद करना सबसे बड़ा धर्म होता है।
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सोच-समझकर भविष्य की तैयारी जरूरी है।
इस कहानी को स्पॉन्सर किया है Codenestify.com ने।