
Desi Kahani: दहेज की आग में जली एक बेटी की मुस्कान
हर गांव में बारातें सजती हैं, बैंड बजते हैं, लड़कियां सजी-धजी डोली में बैठती हैं – पर किसी-किसी घर में ये डोली सिर्फ विदाई नहीं, एक सौदा बन जाती है। ये Desi Kahani है रेणु की – एक ऐसी लड़की जिसने सिर्फ शादी नहीं, अपनी पहचान खोई, और फिर समाज से लड़कर खुद को फिर से पाया।
गांव की वो होशियार बेटी
रेणु उत्तर प्रदेश के फतेहपुर जिले के एक छोटे से गांव भटौली की रहने वाली थी। बेहद समझदार, पढ़ाई में तेज़, और स्वभाव से सीधी-सादी। उसके पिता – हरिनारायण जी, गांव के स्कूल में मास्टर थे और अपनी इकलौती बेटी को ज़िंदगी में आगे बढ़ते देखना चाहते थे।
रेणु ने बी.ए. में टॉप किया और सपना देखा – “सरकारी टीचर बनूंगी।”
लेकिन किस्मत ने कुछ और ही लिख रखा था।
रिश्ते का प्रस्ताव और छुपा हुआ लालच
रेणु के लिए रिश्ता आया – अनिकेत, कानपुर में सरकारी नौकरी करता था। घरवालों को लगा – “सरकारी बाबू है, घर भी अच्छा है, क्या चाहिए?” रिश्तेदारों ने भी तारीफों के पुल बांध दिए।
अनिकेत के पिता – किशनलाल जी ने शादी की रज़ामंदी दी, लेकिन एक शर्त के साथ:
“बस एक कार हो जाए तो बारात में रौनक आ जाएगी, बाकी दहेज नहीं चाहिए।”
रेणु के पिता परेशान हो उठे – “इतनी जमा पूंजी नहीं है कि कार दे सकें…” पर समाज, इज्जत, बेटी की शादी – सब कुछ सामने था।
लोन लिया, ज़मीन गिरवी रखी और बेटी की शादी की तैयारियां शुरू कीं।
शादी या व्यापार?
शादी बड़े धूमधाम से हुई। बारात आई, नाच-गाना हुआ, दूल्हा घोड़ी पर सवार होकर आया, और रेणु की विदाई हुई।
लेकिन असल कहानी तो अब शुरू हुई थी…
शादी के चंद दिनों बाद ही रेणु के ससुराल वालों का रंग बदल गया।
“तेरी बाप ने तो कार दी, लेकिन सोने का सेट बहुत हल्का है…”
“तेरे जैसी पढ़ी-लिखी बहू को तो कम से कम AC के कमरे में रहना चाहिए, नहीं?”
धीरे-धीरे बातों में ताने बढ़ने लगे, खाना कम होने लगा, और बात-बात पर झगड़े।
दहेज की मांग ने तोड़ दी बेटी
अनिकेत, जो शादी से पहले रेणु से बड़े प्रेम से बात करता था, अब हर रात गुस्से से चिल्लाता।
“तुम्हारी वजह से मेरी इज्जत खराब हो रही है… दोस्तों की बीवियां गहनों से लदी रहती हैं।”
रेणु चुपचाप सहती रही – मां ने विदाई के वक्त कहा था, “बेटी, ससुराल ही अब तेरा घर है, निभाना पड़ेगा।”
एक दिन, रेणु को जलती चाय रेग गई – और सास ने कहा, “इसी के लिए लाखों रुपए बर्बाद किए?”
रेणु ने फोन करके पिता को कुछ नहीं बताया – इज्जत बचाने के लिए दर्द छुपा लिया।
जब सहनशक्ति की सीमा पार हो गई
रेणु से शारीरिक हिंसा शुरू हो गई थी। कभी बेल्ट से, कभी बेलन से।
एक रात, उसके पिता अचानक मिलने आ गए। उन्होंने देखा – बेटी के चेहरे पर निशान, आंखों में डर।
“क्या हो रहा है रेणु?” उन्होंने कांपती आवाज़ में पूछा।
रेणु फूट-फूट कर रो पड़ी।
समाज से लड़ाई की शुरुआत
हरिनारायण जी ने उसी रात बेटी को साथ लिया और केस दर्ज करवाया – 498A – दहेज उत्पीड़न का।
गांव के लोग बातें करने लगे –
“लड़की को ससुराल में रखना चाहिए था।”
“अब रेणु से कौन शादी करेगा?”
पर पिता और बेटी अब चुप नहीं थे।
रेणु ने पुलिस को सबूत दिए, कॉल रिकॉर्डिंग्स, मेडिकल रिपोर्ट। केस चला – ससुराल वालों की जमानत तक रद्द हो गई।
रेणु की नई शुरुआत
रेणु ने खुद को तोड़ा नहीं। उसी दर्द को ताक़त बना लिया।
उसने टीचर की तैयारी फिर से शुरू की – और एक साल में यूपी TET क्लियर कर लिया।
आज रेणु अपने ही गांव में सरकारी स्कूल की टीचर है, और गांव की लड़कियों को पढ़ाती है – दहेज के खिलाफ बोलना सिखाती है।
उसने एक NGO शुरू किया – “बेटी बोले” – जहां पीड़ित लड़कियों को कानूनी मदद, काउंसलिंग और आत्मनिर्भर बनने की ट्रेनिंग दी जाती है।
आखिरी अल्फ़ाज़: एक सच्ची Desi Kahani
ये Desi Kahani सिर्फ रेणु की नहीं, हज़ारों बेटियों की है जो हर दिन समाज की चुप्पी में घुट रही हैं।
पर जब एक बेटी बोलती है – तो न सिर्फ अपनी किस्मत बदलती है, बल्कि दूसरी बेटियों के लिए रास्ता खोलती है।
रेणु आज भी कहती है –
“दहेज सिर्फ पैसे का लेन-देन नहीं है, ये एक लड़की की आत्मा की बोली है – और अब हम बिकेंगे नहीं।”
इस कहानी को स्पॉन्सर किया है Codenestify.com ने।