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पीपल के नीचे बैठा सच » old Desi Kahani

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old Desi Kahani » एक इंसान की माफ़ी की तलाश

पीपल के नीचे: बिसनपुर गाँव की सुबह कुछ अलग ही होती थी। मिट्टी की महक, सरसों के फूलों की हल्की सी गंध, और आसमान में उगता सूरज—सब मिलकर एक ऐसी तस्वीर बनाते थे जिसे शब्दों में बाँध पाना मुश्किल था। गाँव के बीचोंबीच एक विशाल पीपल का पेड़ था, जिसकी शाखाओं पर अक्सर तोते और गौरेया चहचहाया करते थे। उसी पेड़ के नीचे बैठा रहता था एक बूढ़ा—रामसनेही।

लोग उसे रामसनेही बाबा कहते थे। उसकी उम्र कोई सत्तर के पार रही होगी। सफेद लहराती दाढ़ी, झुकी हुई पीठ और काँसे की थाली में गुड़ और चने। वह हर सुबह गाँव के बच्चों को बुलाता, उन्हें अपनी पुरानी कहानियाँ सुनाता और थाली में से गुड़-चना बाँटता। बच्चे भी उससे बहुत प्यार करते थे। बाबा की मुस्कान में एक सुकून था, जैसे उसमें कोई दर्द छिपा हो जो वह किसी से बाँटना नहीं चाहता।

कोई नहीं जानता था कि रामसनेही कौन है, कहाँ से आया है। बस इतना याद है कि एक दिन अचानक वो गाँव के बस अड्डे पर दिखा था। न कोई सामान, न कोई पहचान। वो सीधा पीपल के नीचे आ बैठा और वहीं का हो गया।

गाँव वाले उसे कभी कोई सवाल नहीं करते थे। कभी-कभी कोई यह ज़रूर कह देता कि शायद वह संन्यासी है, या किसी अपने से बिछड़ा हुआ कोई आदमी। लेकिन बाबा चुप रहता, मुस्कराता, और कहता—“जो गया, वो मेरे साथ नहीं था। और जो मिला, वो अब मेरा सब कुछ है।”

फिर एक दिन डाकिया आया। चौंकाने वाली बात यह थी कि उसके हाथ में जो चिट्ठी थी, वह रामसनेही बाबा के नाम थी। गाँव के लोग हैरान हुए। बाबा ने चिट्ठी खोली, धीरे-धीरे पढ़ी, फिर मुस्कराया। उसका चेहरा जैसे किसी पुराने ज़ख्म से उभर आया हो।

उसने चुपचाप कहा—“अब जाना होगा।
सरपंच ने पूछा—“कहाँ जाओगे बाबा?”
बाबा ने पीपल की छांव में देखा और बोला—“जहाँ से आया था, वहीं। बहुत साल हुए लौटे हुए।”

Old Desi Kahani » एक सच्चाई, जो सालों छुपी रही

शाम होते-होते, बाबा ने गाँववालों को पहली बार अपने बारे में बताया। वो कोई मामूली इंसान नहीं था। इलाहाबाद हाईकोर्ट का वकील था। नाम—रामसनेही त्रिपाठी। घर, गाड़ी, पैसा, सब कुछ था। पत्नी शिक्षिका थी और बेटा पढ़ाई में होशियार। पर ज़िंदगी को बर्बाद करने के लिए एक फ़ैसला ही काफी होता है।

एक केस में उसने पैसा लेकर झूठी गवाही दिलवाई। एक निर्दोष को फाँसी की सज़ा हुई। बाद में जब सच्चाई सामने आई, तब तक सब खत्म हो चुका था। उस आदमी की मौत ने उसे अंदर से तोड़ दिया। पत्नी ने साथ छोड़ दिया, बेटा नफ़रत करने लगा, और वह खुद अपने ही क़दमों से भाग गया। जहाँ भी गया, चैन नहीं मिला। अंत में यह गाँव मिला—बिसनपुर। और पीपल का पेड़ उसकी माफ़ी का गवाह बन गया।

वह हर दिन बच्चों को पढ़ाता, सेवा करता, ताकि मन को थोड़ा सुकून मिले। लेकिन दिल का बोझ कभी हल्का नहीं हुआ।

जिस चिट्ठी ने उसकी ज़िंदगी का रुका हुआ पहिया फिर से चलाया था, वह उसके बेटे की थी। अब वह खुद वकील बन चुका था। माँ के निधन के बाद उसने पिता को ढूंढने का फ़ैसला किया और सालों की तलाश के बाद, बिसनपुर पहुँच गया।

जब वह गाँव आया, तो उसने बाबा को देखा और उसके पैरों में गिर पड़ा। “पिताजी… इतने साल क्यों छुपे रहे?” उसकी आँखों में पछतावे के आँसू थे।

बाबा ने उसका माथा चूमा और कहा—“पिता तो तभी बना था, जब तू पैदा हुआ था। लेकिन इंसान अब बना हूँ। अब चलो, बहुत समय बर्बाद हो गया है।”

अगले दिन बाबा गाँव छोड़ गए। लेकिन पीपल का पेड़ अब भी खड़ा है। उसकी छांव में अब भी बच्चे पढ़ते हैं। वहाँ एक पत्थर पर उकेरे गए शब्द हैं:

“यहाँ बैठा एक ऐसा इंसान, जिसने खुद को पहचानने में ज़िंदगी बिता दी।”

और गाँव वालों के लिए, रामसनेही सिर्फ बाबा नहीं थे। वह एक सीख थे—कि इंसान चाहे कितनी भी गलती कर ले, जब तक वह सच्चे मन से पछताता है और कर्मों से सुधारता है, तब तक वह फिर से इंसान बन सकता है।

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