Moral stories in hindi, Hindi Story Nisa Rani

Top 10 Inspiring Moral Stories in Hindi for Kids

अधूरी इच्छाएं

Top 10 Moral Stories in Hindi: No.1 कहानी जो आपको ज़रूर पढ़नी चाहिए

कहानी का शीर्षक: “अधूरी इच्छाएं”

बहुत समय पहले की बात है। उत्तर भारत के एक शांत पहाड़ी गाँव में एक वृद्ध ब्राह्मण रहते थे – नाम था पंडित हरिदास। जीवन भर उन्होंने पूजा-पाठ, साधना और सेवा में समय बिताया था। लोग उन्हें बहुत मानते थे, लेकिन एक बात उन्हें हमेशा खटकती थी — उनका बेटा विक्रम

विक्रम पढ़ाई में तेज था, लेकिन युवा होते ही शहर की चकाचौंध में बहक गया। उसे अपने पिता के संस्कार पुराने जमाने की बातें लगती थीं। वह अपने “आधुनिक” विचारों में खो गया और पंडित हरिदास से दूर होता गया।

पिता-पुत्र के बीच की दूरी

हरिदास जी हर शाम तुलसी चौरा के पास दीप जलाकर भगवान से यही प्रार्थना करते, “हे प्रभु! मेरे बेटे को सद्बुद्धि दो।” लेकिन विक्रम को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता था। वह केवल पैसे कमाने और भौतिक सुखों के पीछे भागता था।

एक दिन पंडित हरिदास बीमार पड़ गए। उन्होंने संदेश भिजवाया, “बेटा, एक बार आकर मुझसे मिल लो। शायद यह मेरी अंतिम इच्छा हो।” विक्रम ने समय नहीं निकाला। उसने सोचा, “बाद में देख लूँगा, अभी एक जरूरी बिज़नेस मीटिंग है।”

तीन दिन बाद गाँव से खबर आई — पंडित हरिदास नहीं रहे। विक्रम भागा-भागा गाँव पहुँचा। श्मशान में पिता का अंतिम संस्कार हो चुका था। वहाँ बस एक पुरानी गठरी पड़ी थी — जिसमें एक डायरी और एक लिफ़ाफा था।

पिता की अंतिम चिट्ठी

विक्रम ने काँपते हाथों से चिट्ठी खोली। उसमें लिखा था:

“बेटा विक्रम,

मैंने तुझे जीवन में हर वह शिक्षा देना चाही जिससे तू एक अच्छा इंसान बन सके। धन कमाना गलत नहीं, पर आत्मा को खोकर कुछ भी पाना व्यर्थ है।

मेरा सपना था कि तू अपने कर्मों से समाज में उजाला फैलाए, पर तू अंधेरों की दौड़ में फँस गया।

अगर कभी लौटना चाहे, तो वह तुलसी चौरा तेरा इंतज़ार करेगा — जहाँ तेरा बचपन, तेरे संस्कार और तेरा वास्तविक ‘मैं’ आज भी बैठे हैं।

– तेरा पिताजी”

विक्रम की आँखों से आँसू बहने लगे। पहली बार उसने खुद को इतना अकेला और खोया हुआ महसूस किया।

नया जीवन

उस दिन के बाद विक्रम ने शहर की नौकरी छोड़ दी। वह गाँव लौटा, पिता के अधूरे कार्यों को पूरा किया — मंदिर की सेवा, बच्चों को शिक्षा देना, और सबसे अहम — जीवन को सादगी से जीना

धीरे-धीरे लोग उसे “हरिदास द्वितीय” कहने लगे। वह अपने पिता का गौरव बन गया — भले ही थोड़ी देर से।


 कहानी से सीख (Moral of the Story in Hindi):

“जो दिखता नहीं, वह भी अनमोल होता है। जीवन में नींव जैसे लोग चुपचाप काम करते हैं, लेकिन उन्हीं की वजह से सफलता टिकती है। सच्ची महानता दिखावे में नहीं, जिम्मेदारी निभाने में है।”

समाप्त

नींव के पत्थर

Top 10 Moral Stories in Hindi: No.2 कहानी जो जीवन के महत्वपूर्ण पाठ सिखाती है

कहानी का शीर्षक: “नींव के पत्थर”

(एक गुमनाम कर्मयोगी की कहानी)

राजस्थान के एक ऐतिहासिक कस्बे चांदपुर में एक साधारण-सा पत्थर कारीगर रहता था — रघुवीर प्रसाद शर्मा। वह बचपन से ही अपने पिता के साथ मंदिरों में पत्थरों की नक्काशी करता था। धूप, धूल, तपती दोपहरें और ठंडी रातें — यही उसका जीवन था। पर उसके हाथों में ऐसा जादू था कि पत्थर तक बोल उठते थे।

कर्म में पूजा

रघुवीर का मानना था कि जब कोई अपने काम में ईमानदारी से लगे, तो वही सच्ची पूजा है। वह रोज़ बिना किसी शिकायत के पत्थर गढ़ता, उन्हें रूप देता, उन्हें मंदिर की आत्मा बनाता — पर कभी किसी ने उसका नाम नहीं जाना। लोग पुजारियों के भक्ति-गीतों की तारीफ़ करते, राजाओं की उदारता की प्रशंसा करते — पर उन मंदिरों की नींव किसने डाली, यह किसी को परवाह नहीं थी।

राजा की घोषणा और लोगों की होड़

एक दिन राजा प्रताप सिंह ने राज्यभर में ऐलान करवाया —

“एक दिव्य मंदिर बनेगा, जो सदियों तक हमारी संस्कृति का प्रतीक रहेगा। जो भी इसमें भाग लेगा, उसका नाम शिलालेख पर अमर होगा।”

कारीगर, मूर्तिकार, वास्तुकार — सब उत्साहित थे। सभी ने ऊँचे शिखरों, प्रवेश द्वारों, भव्य गुम्बदों और सुंदर मूर्तियों के डिज़ाइन प्रस्तुत किए। पर रघुवीर ने बस एक छोटी-सी विनती की:

“महाराज, मुझे मंदिर की नींव के पत्थर बनाने दीजिए।”

लोग हँसने लगे। “अरे, पगला गया है क्या? सबको दिखे ऐसा काम करना चाहिए। नींव तो ज़मीन के नीचे दब जाती है।”

रघुवीर ने मुस्कराते हुए कहा —

“दिखना ज़रूरी नहीं है, टिके रहना ज़रूरी है।”

छिपे हुए पत्थरों की ताकत

मंदिर का निर्माण शुरू हुआ। सबने अपनी-अपनी कला दिखाई। मंदिर इतना सुंदर बना कि दूर-दूर से लोग दर्शन करने आने लगे। राजा ने कहा, “यह मंदिर आने वाली पीढ़ियों के लिए आदर्श होगा।”

समय बीता। पाँच वर्षों के बाद एक विनाशकारी भूकंप आया। पूरा कस्बा हिल गया। कई इमारतें ढह गईं। मंदिर की ऊपरी मूर्तियाँ, गुम्बद, दरवाज़े — बहुत कुछ क्षतिग्रस्त हुआ, पर मंदिर का मुख्य ढांचा वैसा का वैसा खड़ा रहा।

राजा ने विशेषज्ञों को बुलाया और पूछा, “मंदिर कैसे बच गया?”

मुख्य शिल्प अभियंता बोला —

“राजन, इसका श्रेय उन नींव के पत्थरों को जाता है जिन्हें रघुवीर ने बेहद सूझबूझ और प्रेम से तराशा था। उन पत्थरों की स्थिति, वजन और बनावट ही मंदिर की रीढ़ बनीं।”

सम्मान और आत्मज्ञान

अगले दिन दरबार में सबके सामने राजा ने रघुवीर को बुलवाया। वह अब बूढ़ा हो चुका था, सफेद बाल, झुकी कमर, पर चेहरा शांत और चमकता हुआ।

राजा ने कहा,

“रघुवीर, तुमने जो कार्य किया, वह चुपचाप था, पर सबसे मजबूत था। अब तुम्हारा नाम इस मंदिर के सबसे ऊपर लिखा जाएगा।”

रघुवीर ने हाथ जोड़कर कहा,

“राजन, मेरा नाम पत्थर में नहीं, मंदिर की स्थिरता में दर्ज है। मैंने जीवनभर यही सीखा — अगर नींव मज़बूत हो, तो ऊपर चाहे जो हो, वह समय के झटकों को झेल सकता है।”

समाप्ति और सीख

रघुवीर की कहानी आज भी चांदपुर में सुनाई जाती है — मंदिर देखने वाले लोग भले ऊपर देख कर तारीफ़ करें, पर सच्चा श्रद्धालु पहले ज़मीन पर नज़र डालता है — जहाँ वो नींव के पत्थर हैं, जो कभी दिखे नहीं, पर हमेशा खड़े रहे।


कहानी से सीख (Moral of the Story in Hindi):

“जो लोग दिखावे से दूर रहकर अपने कर्तव्य का पालन करते हैं, वही समाज की असली नींव होते हैं। सच्चा योगदान वही होता है जो दिखे नहीं, पर टिके ज़रूर।”

समाप्त

आख़िरी अलाव

Top 10 Best Moral Stories in Hindi: No.3 जो आपको प्रेरित करेगी

कहानी का शीर्षक: “आख़िरी अलाव”

एक बेटे की तलाश… खुद की


प्रकृति का मौन इंतज़ार

उत्तराखंड की पहाड़ियों में बसा गाँव घनियाल, अपनी चुप्पियों में कहानियाँ समेटे रहता है। दिसंबर की सर्द रातों में वहाँ की हवा इतनी ठंडी हो जाती है कि साँस लेते वक्त लगता है जैसे सीने में बर्फ घुल रही हो। पेड़ों की शाखों पर ओस की बूँदें जम जाती हैं, और हर घर की छतें बर्फ़ की चादर से ढक जाती हैं।

ठीक ऐसी ही एक रात थी, जब गाँव के एक वृद्ध — दयाराम पांडे — अपने आँगन में सूखी लकड़ियों को सहेज रहे थे। उनकी हड्डियाँ अब जवाब देने लगी थीं, आँखों की रोशनी धुंधली थी, पर हाथों की आदतें अब भी वैसी ही थीं — हर शाम एक अलाव जलाना, और दरवाज़े की ओर टकटकी लगाना।

एक अधूरी उपस्थिति

दयाराम का बेटा नीरज, 7 साल पहले दिल्ली चला गया था। “बड़ी नौकरी और बड़ी ज़िंदगी” की तलाश में। शुरुआत में नीरज हर वीकेंड फ़ोन करता, हर महीने पैसे भेजता, और त्योहारों पर मिठाइयाँ भी। लेकिन धीरे-धीरे उसकी कॉल्स कम होती गईं, तारीखें टलती रहीं, और वादे… बस शब्द रह गए।

पड़ोसी पूछते, “पांडे जी, बेटा कब आ रहा है?”

दयाराम मुस्कराते और कहते,

“बस, अगले महीने। बोले थे, इस बार अलाव साथ बैठकर जलाएँगे।”

पर हर बार वही होता — अलाव जलता, लकड़ियाँ जलतीं, राख बनतीं… पर इंतज़ार नहीं जलता।

वादों की राख

नीरज अब मल्टीनेशनल कंपनी में काम करता था। मीटिंग्स, टारगेट्स, क्लाइंट डिनर्स — ज़िंदगी अब Excel sheets में बँट चुकी थी। पापा की आवाज़ अब उसे धीमी लगने लगी थी। कभी-कभी कॉल के दौरान वो जल्दी से कहता,

“पापा, अभी बिज़ी हूँ, बाद में बात करता हूँ।”
और वो “बाद में” कभी आता नहीं था।

उधर दयाराम हर शाम वही अलाव जलाते, और हर लकड़ी में बेटे की एक उम्मीद डालते।

उनका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा। पर उन्होंने किसी को बताया नहीं। गाँव के वैद्य ने जब दवा देने की कोशिश की, तो बोले:

“बस बेटा आ जाए, वही सबसे बड़ी दवा होगी।”

आख़िरी चिट्ठी

फिर एक दिन, नीरज को एक चिट्ठी मिली। लिखावट पहचानने में वक्त लगा, पर नाम साफ़ था — हरीश, उसका बचपन का दोस्त।

“प्रिय नीरज,

चाचा जी अब इस दुनिया में नहीं रहे। आख़िरी रात भी उन्होंने वही अलाव जलाया था।

काँपते हुए बोले — ‘शायद आज नीरज आ जाए…’

उन्होंने तुम्हारे लिए एक डायरी छोड़ी है। और कुछ लकड़ियाँ… जो अधजली रह गईं।

लौट आओ, नीरज। शायद इस बार खुद को भी साथ ले आओ।”

वापसी — पर किसके लिए?

नीरज ट्रेन से उतरा। टैक्सी से पहाड़ी रास्ते चढ़ता गया। गाँव के रास्ते अब भी वैसे ही थे, पर उन्हें पार करने में अब उसकी सांस फूलने लगी थी।

घर पहुँचा, तो दरवाज़ा खुला था। आँगन वैसा ही था — बस अब अलाव की जगह एक मटमैली राख थी। जैसे समय ने उसे वहीं रोक दिया हो।

दीवार पर एक पुराना फोटो टंगा था — जिसमें वो बच्चा था, पापा की गोदी में। अब वो गोदी ख़ाली थी।

डायरी — हर तारीख़ एक इंतज़ार

नीरज ने वो डायरी खोली।

“1 नवंबर: नीरज ने कहा है, इस बार दिवाली साथ मनाएँगे। लकड़ियाँ पहले से सुखा ली हैं।”

“14 नवंबर: दिवाली आई… पर बेटा नहीं। शायद ज़रूरी काम होगा। कोई बात नहीं।”

“5 दिसंबर: थोड़ा बुखार है। लकड़ियाँ कम हो गई हैं। पर अलाव ज़रूर जलाऊँगा — क्या पता आज वो आए।”

“24 दिसंबर: अब हाथ जलते हैं। शायद आख़िरी बार लकड़ी जलाऊँ। उम्मीद है, इसे वो महसूस कर सकेगा।”

नीरज की आँखों से आँसू टपकने लगे। जिस समय उसे बड़ी सैलरी मिल रही थी, उसी समय उसका पिता उसे महसूस करने के लिए एक अलाव जला रहा था।

वो ज़मीन पर बैठ गया — और राख की मुट्ठी उठाई…
वो सिर्फ राख नहीं थी,
वो उसका अपना समय था, जो वो कभी अपने पिता को दे नहीं पाया।

पुनर्जन्म — ज्ञान के रूप में

नीरज ने उसी आँगन में एक छोटा पुस्तकालय बनवाया — “दयाराम ज्ञान केंद्र”

वहाँ रोज़ बच्चे आते हैं, किताबें पढ़ते हैं, कहानियाँ सुनते हैं — और हर शाम अलाव जलता है। नीरज अब वहीं रहता है, और हर बच्चे से कहता है:

“जाओ, माँ-बाप को आज ही एक चिट्ठी लिखो। मत करना वो भूल, जो मैंने की।”


कहानी से सीख (Moral of the Story in Hindi):

“कामयाबी की दौड़ में जब हम पीछे छूटे चेहरों को भूल जाते हैं, तो ज़िंदगी हमें उन्हीं चेहरों की राख थमा देती है, क्योंकि माँ-बाप सिर्फ हमारे समय के भूखे होते हैं, और अगर हम उन्हें जिए हुए पलों से नहीं भरते, तो एक दिन उनके पास सिर्फ अधजला अलाव होगा और हमारे पास सिर्फ पछतावा।”

NO 4 जल्द ही आने वाली है, जुड़े रहें!

जवान कहानी पर पढ़े

🪔 Hindi Kahaniyon aur Shayariyon ki Duniya – एक क्लिक में सब कुछ

हमारी वेबसाइट पर आपको Aarti Chalisa, Hindi Poems, Hindi Poetry, और Shayari in Hindi से लेकर Bhoot Wali Kahani, Desi Kahani, Eternal Love Story, Hindi Story with Moral, Moral Stories in Hindi, और Stories for Kids तक सब कुछ पढ़ने को मिलेगा। Love Story, Romantic Love Story, Sad Shayari, Desh Bhakti Kavita और चिड़िया की कहानी जैसी दिल छू लेने वाली रचनाएँ यहाँ हिंदी में उपलब्ध हैं। Horror Story और Kahaniya भी पढ़ें, जिनमें हर भाव छिपा है – डर, प्यार, संस्कार और मनोरंजन। अब हर दिन पढ़िए नई कहानियाँ और कविताएं, वो भी शुद्ध हिंदी में।