Romantic Story – रूह से जुड़ी मोहब्बत

शहर की तेज़ रफ्तार ज़िंदगी से दूर, उत्तराखंड की वादियों में बसा एक छोटा-सा पहाड़ी कस्बा था — धाराचोट। वहाँ की सुबहें नीले आसमान और कोहरे की चादर से लिपटी होतीं, और शामें सुनहरे सूरज की आख़िरी किरणों में डूब जातीं।

वहीं रहता था अर्जुन मलिक, पेशे से एक फोटोग्राफर और दिल से एक खामोश कहानीकार।

अर्जुन बचपन से ही अलग था — दूसरों की भीड़ में अकेला। उसे भीड़ पसंद नहीं थी, लेकिन भीड़ में छुपे चेहरों की कहानियाँ खींचती थीं। उसकी तस्वीरें बोलती थीं, वो शब्दों में कम, लेंस से ज़्यादा व्यक्त करता था।

उसके घर की बालकनी से दूर-दूर तक फैले देवदार के पेड़, और बीच में एक शांत सी झील नज़र आती थी। झील उसके लिए एक दर्पण की तरह थी — जहाँ वो अपने विचारों को देखता, समझता और सहेजता था।

एक नई कहानी की शुरुआत

ठंडी हवाओं और खामोशी के उस कस्बे में एक दिन आई एक तूफ़ान जैसी लड़की — सान्या आहूजा। दिल्ली की रहने वाली, आर्टिस्ट, रंगों में जीती, बोलती तो जैसे शब्दों में रौनक घुल जाती।

वो एक महीने की छुट्टियाँ बिताने आई थी, खुद से मिलने और शहर की हलचल से दूर राहत पाने।

पहली ही सुबह उसने अपने स्केच बुक को उठाया और चल पड़ी उस झील की तरफ, जहाँ उसकी नज़रें सुकून ढूंढ रही थीं।

वहीं, उस दिन अर्जुन भी अपने कैमरे के साथ मौजूद था।

जब उसकी नज़र सान्या पर पड़ी, तो वो ठिठक गया।

वो झील के किनारे पत्थर पर बैठी थी — हल्के बादलों के बीच से आती धूप उसके चेहरे पर गिर रही थी, उसकी स्केच बुक में रंग उभर रहे थे और बालों की कुछ लटें बार-बार उसके चेहरे पर आ रही थीं जिन्हें वो हर बार बड़ी मासूमियत से पीछे कर देती।

अर्जुन के हाथ अपने-आप कैमरे की तरफ बढ़े। उसने लेंस सेट किया और क्लिक…

क्लिक की आवाज़ हल्की थी, लेकिन सान्या ने सुन ली।

वो चौंकी, पर डरने की बजाय मुस्कराई।

सान्या:
“तस्वीर ले रहे थे मेरी?”

अर्जुन (थोड़ा झेंपकर):
“माफ़ कीजिए… आप उस लाइट में बहुत सुंदर लग रही थीं… बस, एक फ्रेम में कैद करना चाहा… डिलीट कर दूँ?”

सान्या (हँसते हुए):
“डिलीट क्यों करोगे? जब तुमने इतनी ईमानदारी से ली है, तो अब मुझे भी तो देखने दो।”

अर्जुन ने कैमरा दिखाया।

तस्वीर में सिर्फ सान्या नहीं थी — उसमें उसकी रूह की एक झलक थी। उसकी आँखों में रंग थे, चेहरे पर शांति और स्केच बुक में अधूरी कहानी।

सान्या उस तस्वीर को देखती रही… कुछ पल।

सान्या:
“तुमने मुझे नहीं, मुझे महसूस किया है।”

अर्जुन के लिए ये शब्द किसी कविता की तरह थे — सरल, सुंदर, सजीव।


दिन बीतने लगे… रिश्ता गहराने लगा

अगले कुछ दिनों में उनकी मुलाकातें बढ़ने लगीं। कभी झील पर, कभी उस पुराने कैफ़े में जहाँ दीवारों पर लोगों की यादें टंगी थीं। सान्या अपनी पेंटिंग्स में डूब जाती, अर्जुन अपने कैमरे में। पर दोनों को पता था कि अब वो अकेले नहीं थे।

एक दिन, वो दोनों पहाड़ की चोटी पर बैठकर सूरज डूबते देख रहे थे। ठंडी हवा चल रही थी, और आसमान गुलाबी होने लगा था।

सान्या ने पूछा:

“अर्जुन, तुम इतने चुप क्यों रहते हो?”

अर्जुन कुछ देर चुप रहा, फिर बोला:

“शब्दों से डर लगता है… क्योंकि कई बार वो सच नहीं कह पाते, और कई बार दिल की बात छुपा लेते हैं।”

सान्या ने उसकी आँखों में देखा।
वहाँ एक अधूरी कहानी थी, जो किसी ने कभी सुनी नहीं थी।

सान्या (धीरे से उसका हाथ पकड़ते हुए):
“तो फिर चुप रहो… मैं तुम्हारी ख़ामोशी समझ लूंगी।”

उनका साथ किसी पुराने गीत की तरह था — शांत, गूंजता हुआ, और सुकून देने वाला।


एक शाम का इम्तिहान

एक शाम जब मौसम बिगड़ा, और बारिश ज़ोर से होने लगी, सान्या कस्बे में ही कहीं अटक गई। अर्जुन ने जैसे ही सुना, अपना कैमरा एक ओर रख दिया और बिना छाता लिए भाग पड़ा।

सान्या एक छोटी-सी दुकान के बाहर भीग रही थी। अर्जुन पहुँचा, और बिना कुछ बोले, अपनी जैकेट उतारकर उसके कंधों पर डाल दी।

सान्या ने कहा:
“तुम आए क्यों?”

अर्जुन:
“क्योंकि जब तुम नहीं दिखती, तो इस झील, इन पहाड़ों और मेरी तस्वीरों में कुछ अधूरा लगने लगता है।”

कुछ बदला-बदला सा था…

सान्या और अर्जुन की कहानी अब पूरे कस्बे में चर्चा बन चुकी थी। चायवाले अंकल हों या पहाड़ों में रहने वाली बूढ़ी मासी — सब कहते थे, “अरे, वो कैमरे वाला लड़का ना… और वो रंगों वाली लड़की… जैसे एक-दूसरे के लिए ही बने हों।”

लेकिन हर कहानी में एक मोड़ आता है।

एक शाम, जब झील के किनारे दोनों बैठे हुए थे, सान्या ने अचानक कुछ अनमने अंदाज़ में कहा:
“अर्जुन, मुझे वापस जाना होगा… दिल्ली।”

अर्जुन चुप हो गया।
उसकी उंगलियाँ कैमरे के बटन पर ठिठक गईं, जैसे कोई पल फ्रेम में कैद होने से पहले ही बिखर गया हो।

“कब?” — सिर्फ एक शब्द निकला।

“अगले हफ़्ते की फ्लाइट है…”
सान्या की आवाज़ थकी हुई थी — जैसे वो खुद भी अपने फैसले से जूझ रही हो।

“पर क्यों?”
अर्जुन की आवाज़ में कोई इल्ज़ाम नहीं था, बस एक मासूमियत थी — जैसे कोई बच्चा अपनी सबसे प्यारी चीज़ खोने से डरता हो।

“माँ का कॉल आया था… उनकी तबियत ठीक नहीं है। और… मेरे कुछ पुराने अधूरे काम भी हैं।”

अर्जुन ने कुछ नहीं कहा। बस उठकर चल दिया।
उस दिन उसकी आँखों में आँसू नहीं थे — शायद इसलिए क्योंकि वो रोना नहीं जानता था, बस सहना जानता था।


एक हफ़्ते की खामोशी

अर्जुन ने न तो कॉल किया, न मैसेज।
सान्या ने भी इंतज़ार किया — रोज़ झील के किनारे जाती, सोचती शायद वो आ जाए। लेकिन अर्जुन अपनी तस्वीरों में खो गया — या शायद खुद से भागने लगा।

फिर, आखिरी दिन —
फ्लाइट से ठीक कुछ घंटे पहले, सान्या झील पर गई। बारिश हल्की हो रही थी, और उसका स्केच बुक अब भी अधूरा था।

वहीं पास में, एक चट्टान पर रखा था एक लिफ़ाफ़ा, और उसके नीचे अर्जुन का कैमरा।

वो कांपती उंगलियों से लिफ़ाफ़ा खोलती है…


अर्जुन की चिट्ठी:

“सान्या,

तुम्हारे आने से मेरी दुनिया बदली नहीं — उसने पहली बार साँस ली।

तुम्हारी हँसी में मुझे वो गीत सुनाई दिए जो मैंने कभी सुने नहीं थे।

और तुम्हारी आँखों में मैंने वो घर देखा — जो मेरी तन्हाई को कभी मिला ही नहीं था।

पर शायद कुछ रिश्ते मौसमों की तरह होते हैं।

आते हैं, रूह में बस जाते हैं… पर हमेशा के लिए नहीं रुकते।

तुम्हारे जाने से मैं टूट जाऊँगा — ये कहना झूठ होगा।

लेकिन हाँ… तुम्हारे बिना, तस्वीरें सिर्फ तस्वीरें रह जाएंगी — एहसास नहीं बन पाएंगी।

ये कैमरा अब तुम्हारा है — क्योंकि अब मेरी हर तस्वीर में तुम हो।

और हाँ — मैं तुमसे प्यार करता हूँ।

वो भी उस चुप्पी में, जहाँ शब्द कभी नहीं पहुँच पाते।

— अर्जुन”


सान्या की आँखों से आँसू गिर रहे थे।
कैमरा उसने सीने से लगा लिया — जैसे वो अर्जुन की बाहों में लौट गई हो।

लेकिन वो गई… फ्लाइट पकड़ ली।

अर्जुन पहाड़ों में रह गया — खामोश, मगर उसकी हर तस्वीर में अब सिर्फ एक चेहरा था — सान्या।

एक साल बाद — वही कस्बा, वही झील, पर वो नहीं…

साल बीत गया था।
धाराचोट के मौसम ने करवट ली थी — अब वहाँ ठंडी हवाएं और गुलाबी ठंडक फैल गई थी। झील अब भी शांत थी, लेकिन उसका पानी अब अर्जुन को रुलाता था।

वो अब भी तस्वीरें लेता था — लेकिन अब हर तस्वीर में एक खालीपन झलकता था।
वो अब भी कैफ़े जाता था — लेकिन अब अकेले बैठकर बस एक ही चेहरा याद करता था।

सान्या की मुस्कान।
उसका स्केच बुक।
उसकी चाय की पहली चुस्की लेकर आँखें बंद कर लेना…

वो सब अब याद बन चुके थे — और अर्जुन, एक ऐसी कहानी का हिस्सा जो कभी पूरी नहीं हुई।

उसने एक दीवार पर सान्या की बनाई एक स्केच टाँग रखी थी — जो उसने जाते समय दी थी।
हर सुबह उठते ही वो उसी स्केच को देखता, और हर रात उसी से बातें करता।


सान्या की दुनिया — भीड़ में खोई हुई

दिल्ली में, सान्या एक बड़ी आर्ट गैलरी में काम करने लगी थी।
लोग उसकी कला की तारीफ करते, लोग उसके इर्द-गिर्द रहते, मगर उसका दिल… कहीं पीछे छूट गया था।

कई बार उसने अर्जुन को कॉल करने की सोची, पर डर लगता था —
क्या वो अब भी इंतज़ार कर रहा होगा?
क्या उसने किसी और को अपना लिया होगा?

उसके पास अर्जुन का कैमरा अब भी था — जिसे उसने छूने की हिम्मत नहीं की थी पूरे एक साल में।

लेकिन आज…
आज कुछ बदला।

उसने वही कैमरा उठाया, झील वाली तस्वीरें खोलीं… और उसकी आँखें भर आईं।
वो खुद से एक सवाल नहीं, एक फैसला कर चुकी थी।

“मैं लौटूँगी। बस एक बार और। अगर वो अब भी वहीं हुआ, तो मैं उसे कभी जाने नहीं दूँगी।”


लौट आई वो खामोशी…

सर्दियों की एक सुबह, जब अर्जुन अपनी किताबों के साथ झील के किनारे बैठा था,
एक जानी-पहचानी ख़ुशबू हवा में घुली।

हल्की सी धूप और हल्की सी छांव — और फिर पीछे से एक धीमी आवाज़:

“काफी दिन हो गए न, कोई तस्वीर खींचे?”

अर्जुन का हाथ ठहर गया। दिल की धड़कन बढ़ गई।
उसने धीरे-धीरे मुड़कर देखा — और वहाँ खड़ी थी सान्या।

बाल खुले, हाथ में वही स्केच बुक, और आँखों में आँसू।

अर्जुन कुछ नहीं बोला।
वो उठा, उसके पास गया… और बस उसे देखा — बिना पलकें झपकाए।

सान्या (काँपती आवाज़ में):
“तुम अब भी वहीं हो… और मैं अब कभी नहीं जाऊँगी।”

अर्जुन ने उसका हाथ थामा और कहा:
“अब शब्दों की ज़रूरत नहीं है, तुम मेरी तस्वीर बन चुकी हो — हमेशा के लिए।”


कुछ महीने बाद…

एक छोटी-सी पहाड़ी शादी हुई।
सिर्फ क़रीबी लोग, झील के किनारे, खुला आसमान, और फूलों की खुशबू।

अर्जुन और सान्या — अब साथ थे।
अर्जुन ने अपनी पहली फोटो एग्ज़िबिशन उसी कस्बे में रखी — जिसका नाम था:

“तेरे होने का एहसास”
हर तस्वीर, एक अहसास… हर अहसास, सान्या।


अंतिम दृश्य:

उनका घर अब झील के बिल्कुल पास था।
बालकनी में अर्जुन चाय बनाता और सान्या स्केच करती।
और दोनों के बीच खामोशी नहीं रहती,
बल्कि एक ऐसी समझ — जो शब्दों से परे थी।

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